Tuesday, May 5, 2009

भोकाल टाइट है


पहली बार यह वाक्य मैंने तब सुना जब मेरे शुभ चरण लखनऊ में पधारे। बात तब की है जब मैं होटल मैनेजमेंट पढने के लिए लखनऊ में निवास कर रहा था।

कॉलेज से पहले की शिक्षा दीक्षा एक छोटे से शहर उधमपुर में हुई थी और लखनऊ में आना बिल्कुल वैसे ही था जैसे की एक कूप मंडूक का तालाब में पहुँच जाना। परन्तु धीरे धीरे एक जैसी मानसिकता वाले लड़को से मित्रता होती रही और सेहर अपना सा लगने लगा। चूँकि, लखनऊ का अपना एक गौरवमय इतिहास और धरोहर रही है इसलिए संस्कृतक दृष्टिकोण से शहर का अपना ही अंदाज़ है, और यह रोज़मर्रा की बातो और ताकियाकलामो में साफ़ साफ़ दिखाई देता है। राका ने मुझे आज तक तू कह कर नही पुकारा और हमेशा तुम कह कर ही सम्बोधित किया है।

उन्ही शुरआती दिनों में, एक दिन बातो बातो में हमारे एक प्रिय मित्र रौतेला बोले," गुरु, तुम्हारा तो भोकाल टाइट है। "
मैंने कही भाई, इसका मतलब क्या हुआ?
तो जवाब मिला मतलब तो नही मालूम पर एक्स्पलिन जरूर कर सकते हैं।
भोकाल टाइट का मतलब है , " व्यवस्था मज़बूत है "।
मैंने कहाँ- हैं? अब इसका मतलब क्या हुआ? तो जवाब आया," राजनीति का ज्ञान रखते हो"?
मैंने कहा," रोज़ सुबह नवभारत पढता हूँ और पहले पन्ने से लेकर अन्तिम पन्ने तक चाट जाता हूँ."
jतो गोबर गनेश, फॉर example, " आजकल लखनऊ में मुलायम का भोकाल टाइट है" ( उन दिनों मुलायम ही का था, मायावती का बाद में हुआ ).

मेरे मस्तिषक में रौतेला जी के यह बात पत्थर की लकीर की तरह हमेशा हमेशा के लिए अंकित हो गई। कॉलेज के दूसरे साल में मेरी मित्रता हुई, मेरे सबसे परम मित्र राकेश तिवारी उर्फ़ राका से,मरियल सा होता था परन्तु कॉलेज में उसका भोकाल जरूर टाइट था। शायद इसीलिए वह अपने आप को राका कहलवाना पसंद करता था । पर मुझे क्या, मेरे ऊपर तो राका जी की छत्रछाया थी।


राका, सांगा, लूका एवं नाथू कॉलेज की अनधिकृत कार्यकारिणी के अधिकारीयों में से थे, कॉलेज की सारी पार्टियों को कराने का जिम्मा इन्ही का हुआ करता था।पार्टियां कराने का modus operandi बड़ा ही सीधा और सपाट था. आयोजन समिति यह तय कर लेती थी की वैलेंटाइन डे आ रहा है और उस पर पार्टी का आयोजन करवाना अनिवार्य है. अब भैया पार्टी होगी तो पैसे भी खर्च होंगे और उसके लिए सब लोगो से चंदा लेना होगा.

अक्सर चंदा अपनी इच्छा अनुसार दे सकते है पर कार्यकारिणी का भोकाल टाइट था इसलिए चंदा देना अनिवार्य था. चंदा न देने की स्तीथि में आप को टिका कर दिया भी जा सकता था. इस अनिवार्य चंदे को ना देने वाले में चंद लोग ही शामिल थे जैसे की कुक्कू उर्फ़ संदीप कुकरेती, लाला उर्फ़ विवेक श्रीवास्तव एंड बोक्सेर उर्फ़ विपिन कौशल. इसी के चलते कुक्कू जी भी कार्य समिति में शामिल कर लिए गए थे. कार्यसमिति सिर्फ ७५ प्रतिशत ही आयोजन में लगाती थी और बाकि बचा २५ खुद खा जाती थी.

कुक्कू दिखने में हट्टा कट्टा था और लखनऊ उनिवेरसिटी में भी अध्यनरत था. पिछले साल की गर्मियों में मिस्टर नैनीताल भी रह चुका था. कुक्कू और मेरे में कभी भी घनिष्ठता नहीं रही और मुझे वो हमेशा से ही कांचू किस्म का व्यक्ति लगा. एक बार कॉलेज खत्म होने के बाद
कुक्कू बोला - अरे भाई, हम इंदिरा नगर जा रहे अगर तुम चाहो तो तुम्हे ड्राप कर देंगे,
मैंने कहि - नेकी और पूछ पूछ.
जब हम मुंशी पुलिया पहुंचे तो कुक्कू कहिस - का भैया भेजा fry खाओगे?
मैं आश्चर्यचकित हो गया और सोचने लगा कि यह आज उलटी गंगा कैसे बह रही है.
मैंने भेजा fry तो खा लिया पर हजम नहीं हुआ.
घर पहुँच के मैंने सांगा को फ़ोन लगाया और उसे यह सारा वाक़या बयान किया.
सारा कुछ सुनाने के बाद सांगा बोला - पांडे, तू टेंशन ना ले, कुक्कू में कोई बदलाव नहीं आया, यह सब वैलेंटाइन डे पार्टी का कमाल है.

4 comments:

  1. सही कहा...अच्छी रचना..

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  2. छात्र जीवन के यही तो मजे हैं गौरव भाई।

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  3. Vah bhaiyya Gaurav Pandey- sahi kahe aapne - isi tarah likhenge to sacchi lehan men aapka bhokal tight hai. Badhai- Ravindra Pant

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  4. Lucknow ke kya kahnne..Iam thankful to the city to bring some super spice in all our lives and my tongue as well.Couldnt have asked for better friends then you all.

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