Friday, July 10, 2009

भारतीय रेल लखनऊ से बॉम्बे -2

लूका ने हमरा काफ़ी गरम जोशी से स्वागत किया और घोषित कर दिया की अब वो हमारा official गाइड है। लूका हमसे पहले बॉम्बे आ चुका था और यहाँ के बारे में काफ़ी कुछ जानता भी था।


"भाई लोग, एक बात बता देता हूँ, अक्खा मुंबई वडा पाँव खा के जिन्दा रहता है, इस शहर में अमीर से अमीर और गरीब से गरीब मज़े से रह सकता है "।
मेरे लिए यह सब स्वपन सा प्रतीत हो रह था और मैं मंत्रमुग्ध सा लूका का प्रवचन सुन रिया था।

लूका ने हमारे रूकने का इन्तेजाम ग्रांट रोड में किया था और कह रह था- मैं तुम्हे यहाँ इसलिए रूका रहा क्यूंकि यह जगह टाऊन से बेहद करीब है। बड़ा ही घटिया होटल थी और हम सब एक बेड का १०० रु रात्रि दे रहे थे। उस समय हमे मालूम नही था की ग्रांट रोड बम्बई के सबसे बदनाम इलाको में से एक था, लेकिन रात ढलते ही हमे इस बात का कुछ कुछ आभास सा होने लगा था.....


अबे राका यहाँ की सड़के देखो, कितनी चिकनी है!! साला लखनऊ में हो तो आदमी सो जाए...

लोकल ट्रेन में बैठे तो बावले ही हो गए और डंडो से लटक लटक एक जगह से दूसरी जगह बंदरो कीतरह उछाल कूद मचने लगे।
बॉम्बे की पहली रात ऐसा प्रतीत हो रहा था की कभी ख़तम ही नही होगी, हम लोग मालाबार हिल से चोपाती, फिर गेटवे ऑफ़ इंडिया फिर कही और फिर कही....,

लूका ने हमारे लिए एक दो जगह बात चला कर राखी हुई थी। अगली सुबह हम एम्बेसडर होटल पहुँच गए। वह पहुंचे तो मैं अपना resume होटल ही भूल आया था और मुझे लगा की अब सब गुड़गोबर क्यूंकि उस दिन जमा करने की आखरी तारीख थी। मैं डरते डरते ट्रेनिंग मेनेजर के ऑफिस गया। वह एक साफ़ रंग की साधारण से नाक नक्श की आकर्षक महिला थी, मुझे वो पहली ही नज़र में भा गई। पर उस से क्या, मुझे तो हर सुंदर लड़की भाती थी, उन्हें मैं नही भाता था। परन्तु वह क्षण मेरी जिंदगी का turning पॉइंट साबित हुआ। जेस्सी नाम ता उसका, वह बोली- तुम अपना resume परसों ले आना.

राका मेरे साथ आया था, पर वह कभी भी इन चीजों के लेकर गंभीर नही रहा। सांगा और नथू को विदेश जाने का चस्का था इसलिए वो एक एजेंट के चक्कर में बोरी बन्दर के चक्कर पे चक्कर काट रहे थे।

मेरे सितारे बुलंदी पर थे, मैंने स्क्रीनिंग टेस्ट पास किया, फिर सामूहिक विवाद में सबके छक्के छुडा दिए और अन्तिम सूचि में आ गया। परिणाम घोषित २ हफ्तों के पश्चात होना था इसलिए वह से निकले और वडा पाव भास्काया (हम तो गरीबो की श्रेणी में ही थे) और नये ठिकाने की तलाश में निकल पड़े।

मम्मी ने एक ताऊ जी का फ़ोन नो दिया था, सोचा किस्मत आजमा लू। फ़ोन किया तो उन्होंने पहचान लिया और अपने घर पर रूकने का आमंत्रण दे दिया। अभी आगे गोवा भी जाना था इसलिए कम से कम पैसो में गुजरा करना था। मैं और राका बोरिया बिस्तर ले ताऊ की पास जा धमके. सांगा और नथू , लूका के पास जा कर रहने लगे।

मेरे लिए यह आखरी अवसर था और मैं इसे व्यर्थ नही करना चाहता था। हम दोनों ने रात देर तक होटल लीला के interview की तयारी करी और भोर की प्रतीक्षा करने लगे।


एक है अनार और सो है बीमार!! लड़के लड़कियों की भीड़ आई हुई थी वह पर। मुझसे कहा गया आपको मीठा व्यंजन बनाना होगा। मैंने शेफ कोट डाला और pastry डिपार्टमेन्ट जा कर अपने हुनर को अंजाम देने की कोशिश में लग गया। इतना घटिया बनाया की मुझे उस दिन ही ज्ञात हो गया था की चाहे सूरज पश्चिम से उग आए, मैं चुना नही जओंगा।

लीला वाले बड़े ही हरामी थे, पूरा दिन हमसे काम कराया और चाय के लिए भी नही पुछा।

दिन के तीन बज चुके थे और हमारे भूख के मारे बुरे हाल थे। हम लोग अँधेरी स्टेशन की तरफ़ चलने लगे, बीच में एक चाय की दुकान आई थो सोचा कुछ नाश्ता कर लिया जाए।

-भइया २ चाय और २ प्लेट पकोडे देना।
-पकोडे नही है।
-हैं, तो वो बहार टोकरी में क्या रखे हो?
- वो!। वो तो भजिया है।


मेरी जान में जान आई, हमने कहा - हा भाई वही, हम लोग इसे पकोडा बोलते है।

बॉम्बे का पडाव अपने अन्तिम चरण पर था, जॉब hunting के लिए अगला शहर tourism कैपिटल ऑफ़ इंडिया यानि की गोवा.............

7 comments:

  1. gr8 bhai....aage aage likhte jaoo..

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  2. bhai ye luka charachter hamare yahan ke mawwali hua karta tha... :-)

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  3. looka sanga aur nathu ke baare me janane ke liye 16 may2009 ki post padhe.

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  4. जारी रहो, गोवा पहुँचो!

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  5. vooh din bhi kya din theey bhai....lagta nahi jaise vuus baat ko 11-12 saal ho gaye hai....amazing yaar.

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