हमारे भारतीय परिवेश में यह सवाल आम है। हमें बचपन में बार बार पूछा जाता है कि बेटा, बड़े होके तुम क्या बनना चाहोगे? हम दो भाई और एक बहिन है, छोटे मैं पापा मुझे प्यार से गधा, दद्दा को कंचुआ और दीदी को भी बिगडे हुए नाम से पुकारते थे। उन्होंने कभी भी किसी को सही नाम से नहीं पुकारा, वही गुण मुझ में भी है। मैं भी अपना काफी आलतू फालतू वक्त लोगो के नाम बिगाड़ने में निकालता हूँ। मेरा एक मित्र है, साउथ इंडिया से है और उसका नाम है चेरियन मूकेंचेरी जिसों बिगाड़ के मैंने उनका पुन् नामकरण कर दिया- चेरियन मखन चेरियन। वैसे अगर example देखने जायेंगे तो हजारों है।
चलिए मतलब की बात पर आते हैं, हमारे बड़े भइया जिन्हें हम दद्दा कर के संबोधित करते थे हम से ६ साल बड़े है, लेकिन उन्होंने इसका फायदा
नहीं उठाया, कभी हमे मारा नहीं और हड़काया नहीं। उनसे जब बचपन में यह सवाल किया जाता था उनका जवाब होता था की मैं तो scientist बनूँगा। एक बार स्कूल मे माचिस से कैसे टेलीफोन बन सकता है, फट से उन्होंने बना दिया उसका एक
working मॉडल । एक बार हम गर्मियों की छुट्टियों में हरिद्वार गए तो दद्दा उन दिनों इलेक्ट्रो मग्नेट बनाने के लिए एक्सपेरिमेंट पे एक्सपेरिमेंट किए जा रिया था। दद्दा हमारे सारे रिश्तेदारों मैं साइंटिस्ट के नाम से ही जाना जाता। कनखल ( हरिद्वार) में हमारे घर से थोडी ही दूरी पर गंगा जी बहती थी। जैसे नेहरू जी को प्रयाग की गंगा जी से लगाव था उसी प्रकार हम पांडे बंधुओ को कनखल की गंगा जी से था और अभी भी हैं।
नहीं उठाया, कभी हमे मारा नहीं और हड़काया नहीं। उनसे जब बचपन में यह सवाल किया जाता था उनका जवाब होता था की मैं तो scientist बनूँगा। एक बार स्कूल मे माचिस से कैसे टेलीफोन बन सकता है, फट से उन्होंने बना दिया उसका एक
working मॉडल । एक बार हम गर्मियों की छुट्टियों में हरिद्वार गए तो दद्दा उन दिनों इलेक्ट्रो मग्नेट बनाने के लिए एक्सपेरिमेंट पे एक्सपेरिमेंट किए जा रिया था। दद्दा हमारे सारे रिश्तेदारों मैं साइंटिस्ट के नाम से ही जाना जाता। कनखल ( हरिद्वार) में हमारे घर से थोडी ही दूरी पर गंगा जी बहती थी। जैसे नेहरू जी को प्रयाग की गंगा जी से लगाव था उसी प्रकार हम पांडे बंधुओ को कनखल की गंगा जी से था और अभी भी हैं।
इसके बाद बारी आई हमारी प्रिय बहिन मीना पांडे की, उनसे अगर कोई ये सवाल करता था तो उनका जवाब होता था -" मैं तो हेमा मालिनी बनूगी "। नृत्य कला मैं निपुण , हिन्दी फिल्मो और गानों कि बेहद शौकीन, उनका ध्यान पढ़ाई में कम और गोविंदा कि फिल्मो मैं ज्यादा रहता था। हमारे पहाडी समाज का कोई भी कार्यक्रम हो उस में हमारी प्रिया बहना का भी एक आइटम होता था। पूरे पहाड़ी समाज हमारी बहना एक अच्छी नृत्यांगना के रूप प्रसिद थी।
अब आए बारी हमारी, हमसे कोई पूछे, तो हमारा जवाब होता था कि मैं तो देश का प्रधानमत्री बनूँगा। छुतपन से ही हमारे funde सीधे और सपाट थे। हमे चाहिए थी सत्ता। राजनीति में हमारी दिलचस्पी शुरू से ही थी। जब पहली बार लोकसभा चुनाव सीधे प्रसारित हुए थे, तब मैं १० साल का था, तब आज कि तरह चरणों में मतदान नहीं हुआ करता था बल्कि २-३ दिन म पूरी चुनावी प्रक्रिया पूरी
जब स्कूल में पढ़ रहा था, दसवी कक्षा मैं तो, हमारे स्कूल में यूथ पार्लियामेन्ट आई, मुझे उसमे प्रधानमंत्री तो नहीं अपितु विपक्षी नेता बनाये गया, मैं खुश था क्योंकि उन दिनों अटल जी विपक्ष में थे। मैंने गजब की पेर्फोरामंस दी और सारे सदस्यों में मेरे कृत्य को बहुत सराहा गया।
वो दिन थे और आज है, हमारे बड़े भइया प्रोफ़ेसर है, दीदी शिक्षिका और मैं paak shashtri.
There is more to write but google translation is givine me headache. To be continued
जीवन में सब सोचा हुआ ही नहीं होता ... ये हमारी परिस्थितियां हैं जो हमें कहीं भी ले जा सकती हैं ... बहुत बढिया लिखा आपने।
ReplyDeleteबढ़िया लेख है। हमने तो जीवन में वही सब किया जो सोचते थे कि नहीं करेंगे।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
are mai to bus conductor se lekar pradhanmantri tak banana chahta tha..
ReplyDeleteबनना वह चाहिए जिसमें रुचि हो | यदि किसी कारणवश अपनी रूचि अनुसार न बन पाए तो जो बने हैं उसी में रूचि जागृत करना चाहिए | अर्थात जो भी करो पूरे मनोयोग और परफेक्शन से करो |
ReplyDeletehello gaurav ji....aapka blog bhut acchha lga...ya u kahiye ki aapki bachpan ki yaadon ko padhke maza aaya...sukar hai ki log ye puchhte to hai ki bare hoke kya banoge beta?...kyunki humaare [bihar ke gaawo me aaj bhi koi ladkiyon se yhi nhi puchhta ki badi hoke kya banogi beti?]khair aapki uplabdhiyon ke lie aapko dher sari badhai....or aapki family bhut acchhi hai specily betiya rani''touch wood'''...u should b proud....
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